एमपी के सीएम बनने की अनसुनी कहानी: संघर्ष से सत्ता तक का सफर जानिए मुख्यमंत्री मोहन यादव के बारे में

मोहन यादव की अनकही कहानी, जो एक साधारण लड़के से मुख्यमंत्री बनने तक के सफर को बयां करती है। संघर्ष, शिक्षा, और कड़ी मेहनत ने उन्हें सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

  • उज्जैन के छोटे से गांव से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
  • मोहन यादव की शिक्षा और संघर्ष के पीछे छुपी प्रेरणा
  • कैसे उन्होंने राजनीति को शास्त्र की तरह आत्मसात किया और सफलता पाई

CM Mohan Yadav Birthday : कभी छोटे से उज्जैन के एक सामान्य परिवार से आने वाले मोहन यादव आज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनका जीवन संघर्ष, मेहनत और ईमानदारी का प्रतीक है। आज जब वे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठे हैं, तो उनके पीछे की यात्रा बहुत प्रेरणादायक और संघर्षों से भरी हुई है।

यह कहानी सिर्फ एक मुख्यमंत्री बनने की नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान की है जिसने समाज की समस्याओं को समझा और उन्हें सुलझाने के लिए अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।

क्या अमीर-गरीब की लकीर मिट सकती है?

मोहन यादव का जीवन सवालों से भरा हुआ था। जब वे स्कूल में पढ़ते थे, तो मास्टर जी हमेशा सवाल पूछते थे। मोहन यादव का हाथ हमेशा पहली पंक्ति से उठता था, लेकिन एक सवाल ऐसा था जिसका जवाब उनके मास्टर जी के पास भी नहीं था। यह सवाल था, “क्या अमीर और गरीब के बीच की लकीर मिट सकती है? यह सवाल उनके मन में हमेशा घूमता रहता था। वह जानना चाहते थे कि उनके पिता के जीवन में इतनी कठिनाइयाँ क्यों हैं और यह असमानता क्यों है।

CM Mohan Yadav
CM Mohan Yadav

यह सवाल उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था, क्योंकि यही सवाल मोहन यादव को अपने आसपास की दुनिया को समझने और बदलने के लिए प्रेरित करता था। यही वह समय था जब उनका मार्गदर्शन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय संगठन महामंत्री शालिगराम ने किया, और वे परिषद के पसंदीदा सदस्य बन गए।

संघ की शाखाओं से राजनीति की पाठशाला तक

मोहन यादव ने पांचवी कक्षा से ही किताबों और दुनिया के मैदान में सवालों के जवाब तलाशने की शुरुआत की। उनका मानना था कि जब राजनीति में कदम रखा जाए, तो केवल किताबों की जानकारी ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि व्यावहारिक तैयारी भी जरूरी होती है।
राजनीति में सफलता पाने के लिए, मोहन ने न केवल विज्ञान और कानून की पेचीदगियों को समझा, बल्कि उन्होंने राजनीति को एक शास्त्र की तरह आत्मसात किया। इसके लिए उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और अपने ज्ञान में लगातार वृद्धि की।

किशोरावस्था में मोहन यादव ने संघ की शाखाओं में भाग लिया, जहां उन्हें आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और कठिन परिस्थितियों में निर्णय लेने की कला सीखी। यही अनुभव आगे चलकर उन्हें राजनीति के मैदान में काम आया। विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़कर उन्होंने राजनीति के ककहरे को समझा, और अपने जीवन में इसे लागू किया।

साधारण परिवार से संघर्ष की शुरुआत

मोहन यादव का बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता। उज्जैन की गलियों में पले-बढ़े मोहन का परिवार बहुत साधारण था। उनके पिता पूनमचंद यादव मिल में काम करके परिवार का पालन करते थे। मोहन के चाचा की चाय की दुकान थी, जहां स्कूल के बाद मोहन अपनी पढ़ाई के साथ काम भी करते थे। मोहन का जीवन हमेशा संघर्ष से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने कभी अपनी पढ़ाई से समझौता नहीं किया।

उनकी बहन ग्यारसी देवी कहती हैं, मोहन भैया बचपन से ही मेहनती थे। वह हमेशा घर के कामों में हाथ बटाते थे और पढ़ाई में भी उतना ही मेहनत करते थे। वह हमेशा अच्छे नंबरों से पास होते थे।

पिता की प्रेरणा और आत्मनिर्भरता

एक साधारण परिवार से निकले मोहन यादव ने अपने पिता से बहुत कुछ सीखा। एक बार उन्होंने खुद बताया कि जब वे मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने पुराने घर जाते थे, तो उनके पिता कहते थे, “तुम आते हो तो घर में जाम लग जाता है।” हालांकि, उनके पिता को अपने बेटे की मुख्यमंत्री बनने की कोई अहंकार नहीं था। वह गर्व महसूस करते थे, लेकिन अहंकार से दूर रहते थे।

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी मोहन यादव के पिता अपनी खेती की फसल की कटाई खुद ही देखने जाते थे। वह अपने बेटे को पहले की तरह खर्च भी देते थे। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा उदाहरण था, जहां उन्होंने अपने बेटे की सफलता को गर्व से स्वीकार किया, लेकिन अहंकार को कभी अपनी जिंदगी में जगह नहीं दी।

मोहन यादव का मुख्यमंत्री बनने का सफर

मुख्यमंत्री पद पर मोहन यादव का नाम भले ही अचानक सामने आया हो, लेकिन इस पद तक पहुंचने का उनका सफर पूरी तैयारी से था। उन्होंने कभी भी किसी पद के लिए हड़बड़ी नहीं की। उन्होंने अपनी पूरी राजनीति की तैयारी की और समय के साथ खुद को साबित किया। उनके जीवन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने अपनी सच्चाई और संघर्ष को कभी नहीं छोड़ा।

मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह अपने परिवार के पास लौटते हैं, तो वह कभी भी अपने परिवार से दूर नहीं होते। उनका जीवन आज भी उसी संघर्ष और मेहनत का प्रतीक है, जिस संघर्ष के साथ उन्होंने बचपन में शुरुआत की थी।

खुद पर विश्वास और समाज के लिए काम करना

मोहन यादव की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर किसी का इरादा सही हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता उसे उसकी मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकता। मोहन ने जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ देखीं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वह हमेशा अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहे और समाज के लिए काम करते रहे।

उनके जीवन का सबसे बड़ा सबक यह है कि संघर्ष, ईमानदारी और मेहनत से ही सफलता मिलती है। और यह सफलता सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी होती है।

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Alok Singh

मेरा नाम आलोक सिंह है मैं भगवान नरसिंह की नगरी नरसिंहपुर से हूं ।और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था ।मुझे पत्रकारिता मैं इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का 20 वर्ष का अनुभव है खबरों को प्रमाणिकता के साथ लिखने के हुनर में माहिर हूं।

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