Madhya Pradesh High Court: हाईकोर्ट की फटकार, आदेश के बावजूद नहीं दी अनुकंपा नियुक्ति, अधिकारियों को दी चेतावनी
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के मामले में अधिकारियों की लापरवाही को लेकर सख्त आदेश जारी किया। अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा गया।

- अनुकंपा नियुक्ति के लिए ओमप्रकाश साहू ने कोर्ट का सहारा लिया।
- विभाग ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया, जिस पर हाईकोर्ट ने अधिकारियों को तलब किया।
- यह मामला न्यायिक आदेशों के पालन की अहमियत को रेखांकित करता है।
Madhya Pradesh High Court : अगर आपके सामने ऐसी कोई स्थिति आ जाए, जहां आपका प्रियजन काम करते हुए अचानक दुनिया छोड़ दे और आपकी ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाए, तो क्या होगा? यही सवाल ओमप्रकाश साहू के साथ था, जब उनके पिता आकस्मिक निधि कार्य में काम कर रहे थे और अचानक निधन हो गया।
क्या है अनुकंपा नियुक्ति का मामला?
ओमप्रकाश साहू ने अपनी जीवन यापन को संभालने के लिए अनुकंपा नियुक्ति की मांग की, ताकि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। लेकिन प्रशासन ने इस मांग को ठुकरा दिया। और क्यों? क्योंकि यह तर्क दिया गया कि कार्य भारित कर्मी के उत्तराधिकारी को अनुकंपा नियुक्ति देने का कोई प्रावधान नहीं है।
कोर्ट का आदेश और विभाग की बेरूखी
यह मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा, तो जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने विभाग को कड़ी फटकार लगाते हुए अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने यह माना कि ओमप्रकाश के पिता पहले आकस्मिक निधि कार्य भारित कर्मी थे, और बाद में नियमित कर्मचारियों के तौर पर काम करने लगे थे। ऐसे में विभाग का तर्क कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए यह पात्र नहीं है, पूरी तरह से गलत था।
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इसके बाद भी, विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद याचिकाकर्ता को नियुक्ति नहीं दी। वही पुराना तर्क अपनाया गया कि अनुकंपा नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने विभाग की लापरवाही पर सख्त रुख अपनाते हुए 24 मार्च को ओआईसी, जिला शिक्षा अधिकारी नर्मदापुरम को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होने के आदेश दिए।
क्यों नहीं मिली नियुक्ति?
यह सवाल तो स्वाभाविक है कि जब हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश है, तो फिर विभाग ने आदेश की अवहेलना क्यों की? दरअसल, विभाग का तर्क यह था कि केवल नियमित कर्मचारी के परिवार के सदस्य को ही अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। लेकिन कोर्ट ने इसे नकारते हुए कहा कि यह तर्क सही नहीं है, और याचिका को खारिज नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद, नर्मदापुरम के अधिकारियों ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया।
अधिकारियों पर हाईकोर्ट की सख्त नज़र
हाईकोर्ट ने अधिकारियों को जमकर लताड़ते हुए यह साफ संदेश दिया कि अगर वे न्यायिक आदेशों का पालन नहीं करेंगे, तो उन्हें इसकी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कोर्ट ने आदेश दिया कि ओआईसी, जिला शिक्षा अधिकारी नर्मदापुरम को 24 मार्च को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होकर स्थिति स्पष्ट करनी होगी। यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक आदेशों के उल्लंघन का प्रतीक बन चुका है, और अब अधिकारियों को कोर्ट में अपनी सफाई देनी होगी।