MP Employee News : सुप्रीम कोर्ट का फैसला , संविदा, अंशकालिक , पेंशन भोगी और अतिथि कर्मचारी के लिए
दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिया है कि वह केवल अंशकालिक कर्मचारी हैं। और जो पार्ट टाइम कर्मचारी है उनको नियति कारण का अधिकार नहीं होता है।

- अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करना चाहिए
- अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं के खिलाफ सरकार भूमिका निभाए
- संविदा कर्मचारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
MP Employee News : भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संविदा,दैनिक वेतन भोगी ,अतिथि आदि सभी प्रकार की अस्थाई कर्मचारियों के हित में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक ही पद पर बहुत लंबे समय से कार्य कर रहे कर्मचारियों को नियमित करने का अधिकार है।इसलिए उन्हें नियमित किया जाएगा। सरकार उसके पद के आधार पर अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने से इनकार नहीं करती है।
अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करना चाहिए
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविदा अंशकालिक पेंशन भोगी अतिथि टीचर सभी प्रकार की अस्थाई कर्मचारियों से संबंधित मामले का फैसला 20 दिसंबर 2024 को लिया गया। और इस फैसले पर अमल भी किया गया है।केंद्रीय जल आयोग में कार्यरत सफाई और बागवानी कर्मचारियों द्वारा अपील की गई।
सभी पक्षों के बात को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। न्याय मूर्ति विक्रम नाथ और पीबी बारले की सेट ने कहा है कि सरकार देश के सबसे बड़े नियुक्ताओं में से एक है। उसे प्राइवेट सेक्टर की तरह अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करना चाहिए।
अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं के खिलाफ सरकार भूमिका निभाए
जीआईजी इकोनॉमी के कारण प्राइवेट सेक्टर अपनी जिम्मेदारी से दूर भाग रहे हैं।परंतु सरकार इसका अनुसरण नहीं कर सकती है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि Gig Economy के कारण ही अस्थिर रोजगार व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है इसके कारण भारत में गरीबों का स्टार बढ़ रहा है।और लीवर स्टैंडर्ड कमजोर हो रहे हैं।
और नौकरी के नाम पर लोगों का शोषण किया जा रहा है। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इस प्रकार की व्यवस्था के खिलाफ अपनी अहम भूमिका निभाई न्याय मूर्ति विक्रम नाथ ने अपने फैसले में कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति और श्रम कानून के खिलाफ उनका शोषण करना एक गंभीर विषय बन गया है।और यह है। चिंता पैदा कर रहा है।
संविदा कर्मचारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट में अपील से पहले सभी चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिया है कि वह केवल अंशकालिक कर्मचारी हैं। और जो पार्ट टाइम कर्मचारी है उनको नियति कारण का अधिकार नहीं होता है।
यह भी कहा है कि कर्मचारी नियमित कारण की मांग करने का अधिकार भी नहीं रखते हैं। इसलिए वह इसका मांग नहीं कर सकते हैं। सभी कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी कर्मचारियों का टर्मिनेशन रद्द करते हुए आदेश दिया है कि उन्हें तुरंत नियमित किया जाए। और सेवा में वापस लिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की एडवाइजरी अदालतों के लिए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय को भी रोजगार की वास्तविकता को देखना चाहिए। मामलों की सुनवाई के दौरान long-term service, indispensable dutiesऔर illegalities पर ध्यान देना चाहिए। बड़े सरकारी संस्थानों में कर्मचारियों के प्रति जिम्मेदारी से बचने के लिए, संस्थान को मुनाफा में दिखाने के लिए, और कर्मचारियों पर दबाव बनाए रखने के लिए अस्थाई कर्मचारी , किसी ठेकेदार के माध्यम से आउटसोर्स कर्मचारी को नियुक्त करने की नीति को मंजूरी दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट का या फैसला यह साबित करता है कि, कर्मचारियों को दिए गए लेबल संविदा, अंशकालिक, दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई, अतिथि इत्यादि को नहीं बल्कि उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की प्रकृति पर ध्यान दिया जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि भारत, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक देश है। यह दुनिया के उन देशों में शामिल है जो रोजगार की स्थिरता और श्रमिकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार की वकालत करते हैं।
इस प्रकार की सेवा समाप्ति का विरोध करते हैं जो long-term unemployment को बढ़ावा देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में, अमेरिका की कोर्ट ऑफ अपील्स (U.S. Court of Appeals) के मामले Vizcaino v. Microsoft Corporation का बताए है।जब कर्मचारियों की भूमिका विभाग और संगठन के काम में अनिवार्य हो जाती है
तो उसे अस्थाई आधार पर काम पर रखना, अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन है। ऐसे विभाग अथवा संगठन को कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करने वाला अपराधी माना गया है। यदि सरकार निष्पक्ष रोजगार प्रथाओं का पालन सुनिश्चित करती है तो अनावश्यक मुकदमोनों के बोझ से बचा जा सकता है।