Mp Municipal Law :नगरीय निकायों में नया संशोधित कानून ,मध्य प्रदेश में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर नया कानून लागू जानिए क्या है
राज्यपाल ने 21 जनवरी को इस कानून की मंजूरी पर मोहर लगा दी है।जिसके बाद यह पूरी तरह से लागू हो गया है।
- नया संशोधित कानून क्या है ?
- नगर निगम अधिनियम अन्य बदलाव
- क्या पड़ेंगे इसके प्रभाव ?
- नया संशोधन पहले अध्यादेश के रूप में
Mp Municipal Law : मध्य प्रदेश में नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को लेकर बड़ा बदलाव किया गया है।जिसके तहत संशोधित कानून में अब तीन वर्ष तक इन नेताओं के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
इसके साथ ही प्रस्ताव लाने के लिए पहले की तुलना में अब अधिक पार्षदों का समर्थन होना जरूरी होगा। राज्यपाल ने 21 जनवरी को इस कानून की मंजूरी पर मोहर लगा दी है।जिसके बाद यह पूरी तरह से लागू हो गया है।हम आपको आज इस बदलाव के बारे में विस्तार से बताएंगे।
नया संशोधित कानून क्या है ?
राज्य में नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के संबंध में एक बड़ा निर्णय लिया गया है।जिसके तहत अगर कोई सदस्य इन पदों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाता है। तो उसे दो तिहाई पार्षदों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक था लेकिन अब इस निर्णय को बदल दिया गया है। और नए नियम के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए अब तीन चौथाई मतलब 75% पार्षदों का समर्थन होना आवश्यक होगा।
इसके साथी इस कानून के तहत आप यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ 3 साल का अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाएगा ।यह संशोधन नए नियम और नगर पालिका के प्रशासन कार्यों में स्थित बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है। यह नियम नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कार्यशाली को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह बदलाव क्यों किया गया है?
प्रदेश में स्थानीय निकायों की राजनीतिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। हमेशा देखा जा रहा है। कि विश्वास प्रस्तावों के जारी राजनीति अस्थिरता उत्पन्न होती जा रही थी। जिसे नगर निगम और नगर पालिका के कार्य प्रवाहित हो रहे थे। ऐसे प्रस्तावों के चलते प्रशासनिक कार्यों में विघ्न उत्पन्न हो रहा था।और जनता को आवश्यक सेवाएं प्रभावी ढंग से नहीं दी जा रही थी।
इसके साथ ही जब नगर निगम नगर पालिका में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बार-बार ले जाते थे। तो यह राजनीति प्रतिद्वंद्विता संघर्ष को बढ़ावा देता था।जो सार्वजनिक कल्याण की दिशा में रुकावट पैदा कर रहा था।इस संशोधन के माध्यम से अभियान सुनिश्चित किया जा रहा है कि स्थानीय निकायों में कार्यपालिका और विधायकों के बीच बेहतर ताल मेल बना रहे।
नगर निगम अधिनियम अन्य बदलाव
इस संशोधन के तहत मध्य प्रदेश नगर पालिका द्वितीय संशोधन अधिनियम 2024 और मध्य प्रदेश के नगर पालिका द्वितीय संशोधन अधिनियम 2024 को मंजूरी दे दी गई है। इस अधिनियम के द्वारा नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43- क और नगर पालिका निगम अधिनियम 1956 की धारा 23-क में नए बदलाव किए गए हैं।पहले यह नियम अधिक लचीले थे।लेकिन अब सरकार इन्हें और सख्त बना रही है। जिससे कोई भी विश्वास प्रस्तावना मजबूत समर्थन के ना लाया जा सके।
नगर निगम नगर पालिकाओं ने यह कदम कामकाज को अधिक प्रभावी और संतुलित बनाने के लिए उठाया है। जिससे एक और राजनीतिक स्थिर था। मिलेगी। वहीं दूसरी और कार्यों में और अधिक तेजी होगी। जनता को बिना किसी परेशानी के सेवाएं मिल सकती हैं। और उनकी सेवा में कोई किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं होगी।
क्या पड़ेंगे इसके प्रभाव ?
इस संशोधन से स्थानीय निकायों की कार्यशैली में पारदर्शिता आएगी और स्थिरता बढ़ेगी। पहले के नियम के अनुसार अक्सर देखा जाता था। कि कुछ राजनीतिक दल या समूह द्वारा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाते थे।उन्हें पद से हटाने की कड़ी कोशिश की जाती थी। जिसे न केवल उसे व्यक्ति की छवि खराब होती थी।
बल्कि कार्य प्रणाली भी प प्रभावित की जाती थी।अब इस संशोधन के बाद इस तरह के प्रस्तावों की संख्या कम होती जा रही है। जिससे स्थानीय निकायों का प्रशासनिक कामकाज अधिक सुचारू रूप से कार्य कर सकता है।इसके साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रताप प्रस्ताव तभी ले जाएंगे।
जब एक बड़ा और प्रभावी समर्थन होने हटाने के लिए हो तभी यह कदम उठाए जाएंगे इससे स्थानीय नेताओं को भी यह संदेश दिया जा रहा है। कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियां को गंभीरता से निभाना होगा। यदि उनके खिलाफ कोई भी आरोप लगाए जाते हैं। तो उन्हें जनता के विश्वास को बनाए रखने की पूरी कोशिश करनी होगी।
नया संशोधन पहले अध्यादेश के रूप में
यह नया संशोधन पहले अध्यादेश के रूप में लागू किया गया था हालांकि शीतकालीन सत्र के दौरान आने से विधायक के रूप में विधानसभा में पारित किया गया है।राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह कानून पूरी तरह से और भी प्रभावित हो गया है इस विद्या के पारित होने के बाद अभी आए स्पष्ट हो गया है। कि मध्य प्रदेश में नगर निगम और नगर पालिका के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए पहले की तुलना में आर्थिक पार्षदों का समर्थन अब जरूरी।
यह भी पढ़ें:–मध्य प्रदेश की पुलिस व्यवस्था पर विधायक का नया प्रयोग पुलिस पर होगी नजर थानों में नियुक्त किए प्रतिनिधि